रंगभूमि उपन्यास का संक्षिप्त परिचय
केंद्रीय पात्र: अंधा बिखारी सूरदास
मुंशी प्रेमचंद ने रंगभूमि PDF उपन्यास सबसे पहले उर्दू भाषा में लिखा था और उन्होंने इसे चौगाने हस्ती शीर्षक से प्रकाशित करवाया था
बाद में प्रेमचंद ने सन् 1925 में इस उपन्यास का हिंदी रूपांतरण किया और रंगभूमि नाम से इस उपन्यास का प्रकाशन करवाया। प्रेमचंद का यह बहुत ही प्रसिद्ध उपन्यास है, शुरू करते हैं रंगभूमि उपन्यास की संक्षिप्त कथा वस्तु
उपन्यास औपनिवेशिक शासन के तहत किसान, समाज और कृषि की तबाही को सबसे अधिक दर्शाता है, इस उपन्यास में काशी की बाहरी भाग में बसे पांडेपुर गांव को रंगभूमि की कथा का स्थल बनाया गया है. ग्वाले, मज़दूर, गाड़ीवान और खोमचे वालों की इस गरीब बस्ती में एक गरीब और अंधा चमार रहता है और जिसका नाम है सूरदास
वह हैं तो भिखारी परंतु पुरखों की 10 बीघा धरती भी उसके पास है जिसमें गांव के ढोल यानी जो जानवर है वो चरते रहते हैं सामने ही एक खाल का गोदाम है जिसका मालिक है एक ईसाई जोन सेवक वह सिगरा मोहल्ले का निवासी है इस जमीन पर उसकी बहुत दिनों से निगाह है वह इस पर सिगरेट का कारखाना खोलना चाहता है सूरदास किसी भी तरह अपने पुरखों की निशानी उस धरती को बेचने के लिए राजी नहीं होता है
तब जॉन सेवक अधिकारियों से मेल जोड़ का सहारा लेकर उसे हिलाने की योजना बनाता है। अपनी बेटी सोफिया के माध्यम से राजा भरत सिंह और उसके परिवार से जॉन सेवक का परिचय संबंध स्थापित होता है राजा साहब के परिवार चार व्यक्ति है पत्नी- रानी जाह्नवी, पुत्री- इन्दु, पुत्र- विनय और स्वयं राजा साहब 1 दिन की विनय अपने स्वयंसेवकों के साथ आग बुझाने का प्रयास करते हुए आग की लपटों में फंस जाता है संयोग से, सोफिया अपनी माँ से झगड़ा करके उधर जा निकली थी वह आग में कूदकर विनय को बचा लेती है आग ने उसे कई जगह झुलसा दिया था, विनय के माता पिता सोफिया को अपने साथ ले गए और उसका इलाज करवाया वह उसके प्रति इतने इन स्नेहसिक्त हो गए कि उसे अपने ही घर रखने की सोचने लगे इन्दु, सोफिया की सहपाठिनी और सखी थी उसका विवाह छटारी के राजा महेंद्र कुमार से हुआ था. राजा महेंद्र कुमार सिंह बनारस म्यूनिसिपल बोर्ड के अध्यक्ष थे। इन्दु के द्वारा उन्हें सोफिया और जॉन सेवक के बारे में थोड़ा बहुत मालूम हो चुका था
जॉन सेवक ने इस सहयोग से पूरा पूरा लाभ उठाया एक ओर उसने राजा भरत सिंह को अपने कारखाने के शेयर खरीदने के लिए राजी कर लिया तो दूसरी ओर राजा महेन्द्र कुमार सिंह से सूरदास की जमीन दिलवा देने की हामी भरवा ली उस समय बनारस का जिला अधिकारी क्लार्क नाम का एक अंग्रेज था वह सोफिया पर आसक्त था और उसके लिए सोफिया के माता पिता की ओर से प्रोत्साहन मिला था सोफिया उससे मिली और हट करके राजा महेंद्र पाल के आदेश को रद्द करवाकर क्लार्क से आज्ञा जारी करवा दी। सूरदास की जमीन किसी को नहीं मिल सकती लेकिन राजा महेंद्र कुमार ने गवर्नर से मिलकर वह जमीन जॉन सेवक को दिलवा दी क्लार्क का उदयपुर के लिए तबादला हो जाता है
कारखाना निर्माण और उसके साथ ही मज़दूरों के लिए घर बनाने का क्रम रखा गया जमीन प्राप्त करने के बाद मज़दूरों के लिए घर बनाने की आवश्यकता हेतु पांडेयपुर बस्ती पर निगाह डाली गई अतः पांडेयपुर बस्ती को खाली करवाने की योजना बनी प्रांतीय सरकार से लिखा पढ़ी हुई इजाजत मिल गई बस्ती के लोगों को अपना अपना मुआवजा लेकर घर छोड़ने के लिए कह दिया गया
सूरदास फिर अड़ गया, झोपड़ी के सामने ही उसने सत्याग्रह कर दिया झगड़े ने आंदोलन का रूप धारण कर लिया. सूरदास की मदद के लिए इंद्रदत्त, सोफिया और विनय आ गए दूसरी ओर आंदोलन को दबाने के लिए फौज का धमकी आंदोलन बढ़ता ही गया गोलियां चलीं, इंद्रदत्त शहीद होगये सूरदास को गोली लगी और विनय जब मंच पर आए तो जनता ने उस पर व्यंग्यों की बौछार कर दी अशांत जनता को फौज की गोलियों से बचाने के लिए विनय ने अपने ही रिवॉल्वर अपने सीने में दाग दीं इस आत्म बलिदान से आंदोलन की आँधी थम गई
सुरदास को अस्पताल पहुंचाया गया सोफिया, जाह्नवी, इंदु, भरत सिंह आदि ने उसकी सेवा की किंतु उसे बचा नही सके जनता सूरदास की झोपड़ी की जगह उसकी मूर्ति स्थापित करती है, राजा महेन्द्रकुमार रात मे उसे मिटा ने के लिए जाते है और स्वयंम उस मूर्ति के नीचे दब कर मर जाते है, इस प्रकार राजा महेंद्रकुमार जीत कर भी हार जाते है और सूरदास हार कर भी विजय पा लेता है
PDF Name | रंगभूमि / Rangbhoomi |
File Type: | |
Genres | Upanyas, उपन्यास |
Total Pages: | 427 |
Author | प्रेमचंद / Premchand |
Language | हिंदी |
PDF Size: | 4.61 MB |
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