नमाज का तरीका हिंदी में pdf DOWNLOAD नमाज़ के अहकाम

Book nameनमाज़ के अहकाम
Authorमुहम्मद इलियास अत्तार कादरी
Languageहिंदी
GenreISLAMIC BOOKS
PublisherMaktabat-ul-Madina, Dawat e Islami
Pages384
Publication dateMar 17, 2011

नमाज का तरीका हिंदी में pdf किताब का कुछ हिस्सा

नमाज़ की 6 शराइत

(1) तहारत: नमाज़ी का बदन, लिबास और जिस जगह नमाज़ पढ़ रहा है उस जगह का हर किस्म की नजासत से पाक होना ज़रूरी है। नमाज का तरीका हिंदी में pdf DOWNLOAD

( 2 ) सित्रे औरत :
(1) मर्द के लिये नाफ़ के नीचे से लेकर घुटनों समेत बदन का सारा हिस्सा छुपा हुवा होना ज़रूरी है जब कि औरत के लिये इन पांच आ ‘ज़ा : मुंह की टिक्ली, दोनों हथेलियां और दोनों पाउं के तल्वों के इलावा सारा जिस्म छुपाना लाज़मी है अलबत्ता अगर दोनों हाथ (गिट्टों तक) पाउं (टखनों तक) मुकम्मल ज़ाहिर हों तो एक मुफ्ता बिही क़ौल पर नमाज़ दुरुस्त है |

अगर ऐसा बारीक कपड़ा पहना जिस से बदन का वोह हिस्सा जिस का नमाज़ में छुपाना फ़र्ज़ है नज़र आए या जिल्द का रंग ज़ाहिर हो नमाज़
न होगी | आजकल बारीक कपड़ों का रवाज
बढ़ता जा रहा है। ऐसे बारीक कपड़े का पाजामा पहनना जिस से रान या सित्र का कोई हिस्सा चमक्ता हो इलावा नमाज़ के भी पहनना हराम
है | (बहारे शरीअत, हिस्सा : 3, स. 42, मदीनतुल मुर्शिद बरेली शरीफ़) (4) दबीज़ (या’नी मोटा) कपड़ा जिस से बदन का रंग न चमक्ता हो मगर बदन से ऐसा चिपका हुवा हो कि देखने से उज्व की हैअत मा’लूम होती
हो । ऐसे कपड़े से अगर्चे नमाज़ हो जाएगी मगर उस उज्व की तरफ़ दूसरों को निगाह करना जाइज़ नहीं। ऐसा लिबास लोगों के सामने पहनना मन्अ है और औरतों के लिये ब द -र-जए औला मुमा-न-अत । (बहारे शरीअत, हिस्सा : 3, स. 42, मदीनतुल मर्शिद
बरेली शरीफ़)
(5) बा’ज़ ख़वातीन मलमल वगैरा की बारीक चादर नमाज़ में ओढ़ती हैं जिस से बालों की सियाही चमक्ती है या ऐसा लिबास पहनती हैं जिस से आ’ज़ा का रंग नज़र आता है ऐसे लिबास में भी
नमाज़ नहीं होती । नमाज का तरीका हिंदी में pdf DOWNLOAD

(3) इस्तिक्बाले क़िब्ला :
या’नी नमाज़ में क़िब्ला या’नी का ‘बे की तरफ़ मुंह करना । (1) नमाज़ी ने बिला उज़्र जानबूझ कर क़िब्ले से सीना फैर दिया अगर्चे फ़ौरन ही क़िब्ले की तरफ हो गया नमाज़ फ़ासिद हो गई और अगर बिला क़स्द फिर गया और ब क़दर तीन बार “सुब्हान अल्लाह” कहने के वक्फ़े से पहले वापस क़िब्ला रुख हो गया तो फ़ासिद न हुई । (2) अगर सिर्फ मुंह क़िब्ले से फेरा तो वाजिब है कि फ़ौरन क़िब्ले की तरफ़ मुंह कर ले और नमाज़ न जाएगी मगर बिला उज़्र ऐसा करना मरूहे तहरीमी है।

(3) अगर ऐसी जगह पर हैं जहां क़िब्ले की शनाख़्त का कोई ज़रिया नही है न कोई ऐसा मुसल्मान है जिस से पूछ कर मालूम किया जा सके तो तहर्री कीजिये या’नी सोचिये और जिधर क़िब्ला होना दिल पर जमे उधर ही रुख कर लीजिये आप के हक़ में वोही क़िब्ला है ।
(4) तहर्री कर के नमाज़ पढ़ी बाद में
मा’लूम हुवा कि क़िब्ले की तरफ़ नमाज़ नहीं पढ़ी, नमाज़ हो गई लौटाने की हाजत नहीं । (5) एक शख़्स तहर्री कर के नमाज़ पढ़ रहा हो दूसरा उस की देखा देखी उसी सम्त नमाज़ पढ़ेगा तो नहीं होगी दूसरे के लिये भी तहर्री करने का हुक्म है । नमाज का तरीका हिंदी में pdf DOWNLOAD

(4) वक़्त :
या’नी जो नमाज़ पढ़नी है उस का वक्त होना ज़रूरी है । म-सलन आज की नमाज़े अस्र अदा करना है तो येह ज़रूरी है कि अस्र
का वक्त शुरू हो जाए अगर वक्ते अस्र शुरू होने से पहले ही पढ़ ली तो नमाज़ न होगी । (1) उमूमन मसाजिद में निज़ामुल अवक़ात के नक्शे आवेज़ां होते हैं उन में जो मुस्तनद तौक़ीत दां के मुरत्तब कर्दा और उ-लमाए अहले सुन्नत के मुसद्दक़ा हों उन से नमाज़ों के अवक़ात मा’लूम करने में सहूलत रहती है । (2) इस्लामी बहनों के लिये अव्वल वक्त में नमाज़े फज्र अदा करना मुस्तहब है और बाक़ी नमाज़ों में बेहतर येह है कि मर्दों की जमाअत का इन्तिज़ार करें जब जमाअत हो चुके फिर पढ़ें । तीन अवक़ाते मक्रूहा : (1) तुलूए आफ्ताब से ले कर बीस मिनट बाद तक (2) गुरूबे आफ्ताब से बीस मिनट पहले (3) निस्फुन्नहार या’नी ज़हूवए कुब्रा से ले कर जुवाले आफ़ताब तक । इन तीनों अवकात में कोई नमाज़ जाइज़ नहीं न फ़र्ज़ न वाजिब न नफ़ल न क़ज़ा । हां अगर उस दिन की नमाज़े असर नहीं पढ़ी थी और मक्रूह वक्त शुरू हो गया तो पढ़ ले अलबत्ता इतनी ताख़ीर करना हराम है।
(बहारे शरीअत, हिस्सा : 3, स. 23, मदीनतुल मुर्शिद बरेली शरीफ़) नमाज का तरीका हिंदी में pdf DOWNLOAD

दौराने नमाज़ मक्रूह वक्त दाखिल हो जाए तो ?

गुरूबे आफ्ताब से कम से कम 20 मिनट क़ब्ल नमाज़े अस्र का सलाम फिर जाना चाहिये जैसा के आ’ला हज़रत इमाम अहमद रज़ा ख़ान रहमतुल्लाहअलै फ़रमाते हैं, “नमाज़े अस्र में जितनी ताख़ीर हो अफ़ज़ल है जब कि वक्ते कराहत से पहले पहले ख़त्म हो जाए।” (फतावा र-ज़विय्या शरीफ़ मुख़र्रजा, जि. 5, स. 156) फिर अगर इस ने एहतियात की और नमाज़ में तत्वील की (या’ नी तूल दिया) कि वक्ते कराहत वस्ते नमाज़ में आ गया जब भी इस पर ए’तिराज़ नहीं।”
(फतावा र ज़विय्या शरीफ़ मुखर्रजा, जि. 5, स. 139 ) नमाज का तरीका हिंदी में pdf DOWNLOAD

(5)निय्यत :
निय्यत दिल के पक्के इरादे का नाम है । (1) ज़बान से निय्यत करना ज़रूरी नहीं
अलबत्ता दिल में निय्यत हाज़िर होते हुए ज़बान से कह लेना बेहतर
है। अ-रबी में कहना भी जरूरी नहीं उर्दू वगैरा किसी भी ज़बान में कह सकते हैं ।
( 2 ) निय्यत में ज़बान से कहने का ए’ तिबार नहीं या’नी अगर दिल में म-सलन ज़ोहर की निय्यत हो और ज़बान से लफ्ज़े अस्र निकला तब भी ज़ोहर की नमाज़ हो गई | (3) निय्यत का अदना द-रजा येह है कि अगर उस वक्त कोई पूछे कि कौन सी नमाज़ पढ़ते हो ? तो फ़ौरन बता दे | अगर हालत ऐसी है कि सोच कर बताएगा तो नमाज़ न हुई ।(4) फ़र्ज़ नमाज़ में निय्यते फ़र्ज़ भी ज़रूरी है म-सलन दिल में येह निय्यत हो कि आज की जोहर की
फ़र्ज़ नमाज़ पढ़ता हूं । (5) अस्सह (या’ नी
दुरुस्त तरीन) येह है कि नफ्ल, सुन्नत और तरावीह में मुतलक नमाज़ की निय्यत काफ़ी है मगर एहतियात येह है कि तरावीह में तरावीह या सुन्नते वक्त की निय्यत करे और बाक़ी सुन्नतों में सुन्नत या सरकारे मदीना की मुता-ब-अत (या’नी पैरवी) की निय्यत करे, इस लिये कि बा’ज़ मशाइख इन में मुतलक नमाज़ की
निय्यत को नाकाफ़ी क़रार देते हैं ।
(6) नमाज़े नफ्ल में मुतलक नमाज़ की निय्यत काफ़ी है अगर्चे नफ्ल निय्यत में न हो । येह निय्यत कि मुंह मेरा क़िब्ला शरीफ़ की तरफ़ है शर्त नहीं । (8) इक्तिदा में मुक्तदी
का इस तरह निय्यत करना भी जाइज़ है कि जो नमाज़ इमाम की है वोही नमाज़ मेरी है।(9) नमाज़े जनाज़ा की निय्यत येह है, “नमाज़ अल्लाह के लिये और दुआ इस मय्यित के लिये ।
(10) वाजिब में वाजिब की निय्यत करना
ज़रूरी है और इसे मुअय्यन भी कीजिये म-सलन ईदुल फित्र, ईदुल अज़्हा, नज़्र, नमाज़े बा’दे तवाफ़ (वाजिबुत्तवाफ़) या वोह नफ्ल नमाज़ जिस को जानबूझ कर फ़ासिद किया हो कि उस की क़ज़ा भी वाजिब हो जाती है। (11) सज्दए शुक्र अगर्चे नफ्ल है मगर उस में भी निय्यत ज़रूरी है म-सलन दिल में येह निय्यत हो कि मैं सज्दए शुक्र करता हूं । (12) सज्दए
सह्व में भी “साहिबे नहरुल फ़ाइक़” के नज़दीक निय्यत ज़रूरी है । या’नी उस वक्त दिल में येह निय्यत हो कि मैं सज्दए सह्ह्व करता
हूं। नमाज का तरीका हिंदी में pdf DOWNLOAD

(6) तक्बीरे तहरीमा :
या’नी नमाज़ को “अल्लाह हु अक़बर” केह कर
शुरूअ करना ज़रूरी है।

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