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PDF Name | जीवन के अर्थ की तलाश में मनुष्य / MAN’S SEARCH FOR MEANING IN HINDI |
File Type: | |
Genres | प्रेरक / Motivational, non-fiction, Self Help |
Total Pages: | 135 |
Author | Viktor Frankl |
Language | हिंदी |
PDF Size: | 2.7 MB |
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किताब का कुछ अंश:
शिविर में हमारा पहला दिन
हमें उसी दिन शाम को, उस उँगली के खेल के मायने समझ में आ गए। यह हमारे जीवन या मृत्यु के लिए लिया गया पहला फैसला या पहला चुनाव था । हमारे काफिले के अधिकतर व्यक्तियों यानी लगभग नब्बे प्रतिशत साथियों के लिए यह मौत का फरमान था। अगले कुछ ही घंटों में उन्हें मौत की सज़ा सुना दी गई। जो लोग बायीं ओर भेजे गए थे, उन्हें स्टेशन से सीधा कदमताल करते हुए शवदाह गृह की ओर भेज दिया गया और फिर वे हमेशा के लिए गहरी नींद सुला दिए गए। वहाँ काम कर चुके एक व्यक्ति ने मुझे बताया कि उस इमारत के दरवाज़ों पर कई यूरोपियन भाषाओं में ‘स्नानघर’ लिखा था। अंदर जाते ही हर कैदी को एक साबुन का टुकड़ा दिया जाता और फिर…..। लेकिन शुक्र है कि मुझे वे सब घटनाएँ दोहराने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि इस आतंक के बारे में पहले से ही बहुत से दस्तावेज़ मौजूद है और लोग इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।
हममें से जो लोग बच गए थे यानी काफिले के साथ आए केवल कुछ प्रतिशत बंदी, उन्हें शाम को यह सब पता चला। मैंने वहाँ पहले से रह रहे बंदियों से पूछा कि अन्य बंदियों और मेरे दोस्तों को कहाँ भेजा गया था?
‘क्या उसे बायीं ओर भेजा गया था?’ उसने पूछा ।
‘हाँ।’ मैंने उत्तर दिया।
‘तब तुम उसे वहाँ मिल सकते हो।’ उसने एक ओर इशारा किया।
‘कहाँ?” मैंने पूछा। उसने कुछ गज़ की दूरी पर दिख रही चिमनी की ओर इशारा किया, जिससे निकलती आग की लपट पोलैंड के आसमान पर जाते हुए आगे जाकर एक बादल में ओझल हो रही थी ।
‘वह देखो, तुम्हारा दोस्त स्वर्ग की दिशा में जा रहा है’, जवाब आया। लेकिन मैं यह बात तब तक नहीं समझ सका, जब तक मुझे दो टूक शब्दों में सारी हकीकत नहीं समझाई गई।
मैं बातों को सिलसिलेवार ही बता रहा हूँ। अगर मनोवैज्ञानिक नज़रिए से देखा जाए तो स्टेशन से धुंधल से भरी उस सुबह से लेकर, शिविर में हमारी पहली रात तक, हमारे लिए अभी बहुत कुछ देखना बाकी था।