लेखक का परिचय
मुंशी प्रेंमचंद हिंदी और उर्दू साहित्य के जाने-माने लेखक है. दो बैलों की कथा भी उन्ही के द्वारा लिखी गई है. मुंशी प्रेंमचंद जी का जन्म बनारस के एक गाँव लमही में 31 जुलाई 1880 को हुआ था. इनका असली नाम धनपत राय था. 1921 में असहयोग आन्दोलन के दौरान उन्होंने सरकारी नौकरी त्याग दी थी और उस के बाद वो साहित्य सृजन में लग गए. 8 अक्टूबर 1936 को मुंशी प्रेंमचंद जी का देहांत हो गया.
“दो बैलों की कथा” मुंशी प्रेमचंद की श्रेष्ठ कहानियों में से एक है। इस कहानी के माध्यम से लेखक ने किसान जीवन और उनके पशुओं के भावनात्मक संबंधों का मर्मस्पर्शी वर्णन किया है। प्रेमचंद ने हीरा और मोती नाम के दो बैलों को सीधे साधे भारतीय जनता का प्रतीक माना है, जो अपनी आजादी के लिए बार-बार संघर्ष करते हैं और अंततः उसे प्राप्त कर लेते हैं। इस तरह यह कहानी सच्चे अर्थों में आजादी के आंदोलन की ही कहानी लगती है।
दो बैलों की कथा पाठ का सारांश (Detailed Summary)
दो बैलों की कथा पाठ में झूरी काछी नाम के व्यक्ति के पास हीरा और मोती नाम के दो बैल थे। वे दोनों मूकभाषा में बातचीत किया करते थे। दोनों बैल बहुत ही सुंदर थे। झूरी उन्हें बहुत प्रेम करता था और उनकी देखभाल बहुत अच्छे ढंग से करता था। बैल भी अपने मालिक को बहुत चाहते थे। एक बार झूरी की पत्नी का भाई “गया” खेती के काम के लिए उन बैलों को अपने गांव ले जाने आता है । रास्ते में उन बैलों ने उसे बहुत तंग किया क्योंकि वे उसके साथ जाना नहीं चाहते थे फिर भी वह किसी तरह मारपीट कर उन्हें अपने घर ले पहुंचा जहां उसने उन्हें खूंटियों से बांध दिया और सूखा चारा खाने को डाल दिया। परेशान होकर दोनों बैल रात में रस्सी तुड़ा कर भाग निकले और किसी तरह मुसीबतें झेलते हुए अपने घर पहुंचे। सुबह जब झूरी ने उन्हें अपनी जगह खड़े देखा तो उन्हें गले से लगाकर खूब प्रेम किया परंतु झूरी की पत्नी को यह बात अच्छी नहीं लगी और उसने गुस्से में नौकर से बैलों को केवल सूखा भूसा खिलाने को कहा।
दूसरे दिन झूरी का साला फिर बैलों को लेने आ पहुंचा। इस बार वह बैलों को गाड़ी में जोतकर ले गया और घर ले जाकर उन्हें मोटी-मोटी रस्सियों से बांध दिया। बैलों ने अपना ऐसा अपमान कभी नहीं झेला था क्योंकि झूरी के घर उन्हें खूब अच्छे से दाना पानी दिया जाता था। अगले दिन गया उन बैलों को खेत जोतने लेकर गया, लेकिन बैलों ने एक कदम नहीं बढ़ाया गुस्से में आकर वो हीरा की नाक पर डंडा बरसाने लगा। यह देखकर मोती को बहुत गुस्सा आया और वह हल लेकर भागा। तब “गया” गांव के दो आदमियों के साथ लाठियां लेकर उसे पकड़ने दौड़ा। मोती जैसे ही उनका मुकाबला करने के लिए तैयार हुआ वैसे ही हीरा ने उसे शांत कर दिया। दोनों को पकड़ कर घर लाया गया और रात को फिर दोनों बैलों के सामने सूखा भूसा डालकर घर के लोग भोजन करने लगे। तभी भैरों की लड़की दो रोटियां लेकर आई और दोनों के मुंह में एक एक रोटी दे गई। वह छोटी लड़की रोज ऐसा करने लगी।
सुबह होते ही दोनों बैलों को हल में जोता जाता और रोज उन्हें डंडे खाने पड़ते पर उस छोटी लड़की के प्रेम के कारण वह रोज इस अपमान को झेल जाते । लड़की की मां मर चुकी थी और सौतेली मां का उसके प्रति व्यवहार अच्छा ना था । मोती ने हीरा से लड़की की सौतेली मां को सींग मारकर पटक देने की बात कही। परंतु हीरा ने यह कहकर मना कर दिया कि औरत जात पर हाथ उठाना अच्छी बात नहीं होती। फिर एक दिन उस छोटी लड़की ने रात के समय उन दोनों बैलों को आजाद करके भागने के लिए उनकी रस्सियां खोल दी और खुद शोर मचा दिया कि फूफा वाले दोनों बैल भागे जा रहे हैं जिससे किसी को उस पर शक ना हो। अचानक बैलों के भागने से हड़बड़ाया हुआ “गया” गांव वालों को बुलाने गया कि इतनी देर में दोनों बैलों को भागने का मौका मिल गया । परंतु भागते भागते रास्ता भटक गए। रास्ते में उन्हें एक खेत मिला जिसमें घुसकर उन्होंने अपना पेट भरा और फिर एक दूसरे के साथ मस्ती करने लगे। तभी उन्हें सामने से एक सांड आता दिखाई पड़ा। दोनों उससे बचना चाहते थे परंतु भागने में उन्होंने कायरता समझी। तब उन्होंने सलाह बनाई कि दोनों मिलकर उसका मुकाबला करेंगे और उसे भगा देंगे। फिर दोनों ने मिलकर सांड को बेदम कर दिया और वहां से भाग निकले।
आगे चलकर फिर एक मटर के खेत में घुस गए पर थोड़ी ही देर में वहां खेत का रखवाला आ गया। हीरा तो तुरंत निकल गया परंतु मोती के पैर गीली मिट्टी में धंस गए और वह निकल ना सका। उसे फंसा देखकर हीरा भी लौट आया। दोनों बैल पकड़े गए और फिर उन्हें कांजी हाउस में बंद कर दिया गया। दोनों बैलों के जीवन में ऐसा पहली बार हुआ था कि उन्हें सारे दिन कुछ खाने को ना मिला। कांजी हाउस में और भी कई जानवर बंद थे जिन्हें कुछ खाने को ना दिया जाता था। सिर्फ पीने के लिए पानी दिया जाता था वह भी दिन में एक बार। दोनों बैलों ने वहां से भागने की योजना बनाई। परंतु बाड़े के चौकीदार ने जब उन्हें सींग मारकर दीवार तोड़ते देखा तो डंडों से पीटा और मोटी रस्सी से बांध दिया परंतु कुछ देर बाद मौका मिलते ही उन्होंने फिर जोर लगाकर आधी दीवार गिरा दी और काफी जानवर वहां से भाग गए। डर के मारे वहां बंधे गधे भागना नहीं चाहते थे। आधी रात तक गधे वहीं खड़े रहे और मोती, हीरा की रस्सियां काटता रहा। असफल मोती ने गधों को सींग मार कर वहां से भगा दिया। अगले दिन मोती को खूब मारा गया और मोटी रस्सी से बांध दिया गया। दोनों बैल भूखे प्यासे वहीं पड़े रहे एक दिन बाड़े के सामने उनकी बोली लगने लगी। दोनों को निकाला गया। कमजोर हो चुके बैलों को कोई खरीदना नहीं चाह रहा था। तभी एक दडियल आदमी ने उन्हें खरीदा। दोनों बैलोंको उसके कसाई होने का आभास हो गया था इसलिए वे डर से कांप रहे थे। हीरा मोती उसके साथ चल दिए। रास्ते में गाय बैलों को खेत खलिहानों में चरता देख दोनों बैल अपनी किस्मत को दोष दे रहे थे। जिस रास्ते से वे दढियल के साथ जा रहे थे अचानक से वह रास्ता उन्हें परिचित सा लगने लगा। उनकी थकान गायब हो गई। उन्हें अपना खेत और कुआं पहचान में आ गया। अपना घर नजदीक जानकर दोनों तेजी से भागे और अपने स्थान पर जाकर ही रुके। उन्हें वापस आया देखकर झूरि बहुत खुश हुआ। तभी दढियल आकर उन्हें अपना बताने लगा। उसने कहा मैं इन्हें मवेशीखाने से नीलामी में खरीदकर लाया हूं। वह बैलों को जबरदस्ती ले जाने का प्रयास करने लगा। मोती ने अवसर पाकर अपने सींग चलाए और दढियल को भगा दिया। थोड़ी देर बाद झूरि ने दोनों को खली, चूनी, चोकर और दाना डाला। दोनों बैल मजे से खाने लगे। यह देख पूरा गांव उत्साह में फूला न समाया । तभी झूरि की पत्नी ने आकर दोनों बैलों के माथे चूम लिये।
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